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परीक्षा के बाद दे देते फर्जी डिप्लोमा, आरोपी भूमिगत : शिक्षकों का ब्लॉग latest updates

डिप्लोमा इन एजुकेशन के नाम पर फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों के तार शहर की कई नामी शिक्षण संस्थाओं तक जुड़े हैं। इसलिए कि जिन तीन लोगों के नाम इसमें सामने आए हैं, वे पहले से भी कई तरह की परीक्षाएं भारतीय विद्यालय में कराते रहे हैं। अफसरों का कहना है कि डीएड की फर्जी परीक्षा के बाद परीक्षार्थियों को डिप्लोमा भी फर्जी थमा दिया जाता, जिसकी न मप्र में मान्यता होती और न ही परीक्षार्थियों का कोई भला होता।

ऐसे पकड़ में आया फर्जीवाड़ा : मंगलवार को एसडीएम नीतू माथुर व डीईओ परमजीत सिंह गिल ने जब भारतीय विद्यालय में छापा मारा तो साफ हुआ कि वहां 41 परीक्षार्थियों ने डीएड का पेपर दिया। यह उनका आठवां पेपर था, जाहिर है कि परीक्षा पहले से ही संचालित की जा रही थीं। जबकि असल में डीएड के एग्जाम कल बुधवार से होना हैं। जांच में पता लगा कि शहर के कोचिंग संचालक एवं टयूशन पढ़ाने वाले लोगों ने अभ्यर्थियों से डीएड कराने के लिए आवेदन पत्र जमा कराए। फिजिकल रोड स्थित वैष्णव इंस्टीटयूट के नितिन शर्मा एवं बैराड़ के श्रीराम इंस्टीटयूट के संचालक की इसमें अहम भूमिका रही। चूंकि परीक्षा का कोई टाइम टेबिल नहीं था। सिर्फ सेंटर संचालक ने मौखिक तौर पर आवेदकों को टाइम टेबल बता दिया। पेपर ई-मेल के माध्यम से आना बताया गया। लेकिन जब एसडीएम ने ईमेल के बारे में पूछा तो यह बात झूठी निकली।

नितिन ने अपनी लोकेशन राजस्थान बताई : वैष्णव इंस्टीटयूट फिजिकल के संचालक नितिन शर्मा की पतारसी के लिए एसडीएम ने फिजीकल चौकी प्रभारी जयसिंह यादव को भेजा। एसडीएम ने बताया कि चौकी प्रभारी ने जब नितिन के मोबाइल पर बात की तो उसने बताया कि मैं राजस्थान एक गमी में शामिल होने आ गया हूं।

एफआईआर दर्ज होगी

इस फर्जी बीएड परीक्षा में तीन लोगों पर भारतीयम संचालक प्रमोद शर्मा, वैष्णव इंस्टीटयूट संचालक नितिन शर्मा एवं श्रीराम इंस्टीटयूट बैराड़ के संचालक के विरुद्ध एफआईआर दर्ज कराने के लिए जिला शिक्षा अधिकारी से कहा है। नीतू माथुर, एसडीएम शिवपुरी

2013 से मान्यता रद्द

कर्नाटक ओपन यूनिवर्सिटी को नेट पर सर्च किया तो उसकी मान्यता वर्ष 2012-13 में ही खत्म हो चुकी है। परमजीत सिंह गिल, डीईओ शिवपुरी

यह थी प्लानिंग

शिक्षकों के रिक्त पदों को भरने के लिए सरकार ने भर्ती निकाली है, जिसमें बीएड व डीएड का डिप्लोमा अनिवार्य है। शिक्षक बनने के फेर में आवेदक किसी भी तरह से यह डिप्लोमा हासिल करना चाहते हैं। इसी का फायदा उठाकर रैकेट में शामिल लोगों ने आवेदकों से पहली किश्त लेकर एक फर्जी परीक्षा का आयोजन किया। जिसमें भारतीय विद्यालय को भी शामिल कर उसे परीक्षा केंद्र बनाया गया। परीक्षा पूरी होने के बाद उक्त आवेदकों से दूसरी किश्त लेकर उन्हें बीएड का फर्जी डिप्लोमा थमा दिया जाता। अगर भर्ती करने वाले भी आंख मूंदे बैठे रहते तो शायद यह फर्जी डिप्लोमा भी मान्य कर लिया जाता। यदि राज खुलता भी तो तब तक फर्जीवाड़ा करने वाले न जाने कहां होते। 


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